NPS Vs UPS | केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए नई पेंशन स्कीम को मंजूरी दे दी है। इसे एकीकृत पेंशन योजना कहा जाता है। यह योजना राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली की जगह लेगी। हालांकि, जो कर्मचारी NPS में बने रहना चाहते हैं, वे UPS नहीं चुन सकते हैं। सरकार ने साफ कर दिया है कि कर्मचारियों को एनपीएस और यूपीएस में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया जाएगा। नई पेंशन योजना 1 अप्रैल, 2025 से लागू होगी।
NPS के मुख्य फीचर्स
* 10% और DA कर्मचारियों की बेसिक सैलरी से काटा जाता है।
* NPS शेयर बाजार पर आधारित होता है इसलिए इसमें निवेश करना जोखिम भरा है। इसके अलावा, कुछ स्थितियों में, करों का भुगतान करना पड़ता है।
* 6 महीने के बाद महंगाई भत्ते का कोई प्रावधान नहीं है।
* रिटायरमेंट के बाद इसे फिक्स्ड पेंशन की गारंटी नहीं दी जाती है, बल्कि यह एन्युटी पर निर्भर करता है।
* कर्मचारियों को मूल वेतन का 10% योगदान देना होगा। सरकार इसमें अपनी 14% हिस्सेदारी देती है।
* इस स्कीम में आपको रिटायरमेंट के बाद पेंशन पाने के लिए एनपीएस फंड में से कम से कम 40% एन्युटी लेनी होती है।
* खाताधारक की मृत्यु के बाद NPS में निवेश की गई राशि नॉमिनी को दे दी जाती है। अगर नॉमिनी पेंशन लेना चाहता है तो उसे इसके लिए एन्युटी खरीदनी होगी।
* इस योजना में प्राइवेट कंपनी में काम करने वाला व्यक्ति भी निवेश कर सकता है और इसका फायदा उठा सकता है।
* Zजो लोग रिस्क लेकर हाई रिटर्न पाना चाहते हैं वो इस प्लान में निवेश कर सकते हैं और रिटायरमेंट के बाद आपको पेंशन मिल सकती है।
UPS के मुख्य फीचर्स
* सेवा के हर छह महीने के लिए, सेवानिवृत्ति के बाद मासिक वेतन का दसवे हिस्से के तौर पर जोड़ा जाएगा।
* शेयर बाजार पर आधारित नहीं है। ऐसे में कोई खतरा नहीं है।
* रिटायरमेंट के बाद आपको एक निश्चित पेंशन मिलेगी। यह रिटायरमेंट से पहले 12 महीने के औसत बेसिक सैलरी का 50 फीसदी होगा। हालांकि, केवल उन लोगों को लाभ मिलेगा जिन्होंने कम से कम 25 वर्षों तक काम किया है।
* अगर कोई व्यक्ति 10 साल काम करने के बाद नौकरी छोड़ता है तो उसे न्यूनतम 10,000 रुपये प्रति माह पेंशन मिलेगी।
* कर्मचारियों को योगदान करने की आवश्यकता नहीं है। कर्मचारियों के मूल वेतन का 18.5% सरकार वहन करेगी।
* कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिवार को कर्मचारी की पेंशन का 60% हिस्सा मिलेगा।
* यह सिर्फ केंद्रीय कर्मचारियों के लिए है। हालांकि राज्य सरकारों को भी विकल्प दिया गया है।
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