No Cost EMI | नो कॉस्ट ईएमआई का मतलब ग्राहकों को गुमराह करना है? पढ़ें क्या कहता है RBI

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No Cost EMI |आजकल लोगों की जरूरतें बहुत बढ़ गई हैं। नतीजतन, विभिन्न वस्तुओं की खरीद और बिक्री में भारी वृद्धि हुई है। खरीद-फरोख्त बढ़ने से प्रोफेशनल्स के बिजनेस और मार्केट में प्रतिस्पर्धा भी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए खास ऑफर, डिस्काउंट ऑफर किए जाते हैं। ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ सुविधा भी उन्हीं आकर्षक ऑफरका एक हिस्सा है। ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ एक ऐसा ऑफर है जिसमें ग्राहकों को ब्याज मुक्त किस्तों में कोई भी सामान खरीदने की सुविधा दी जाती है। उस स्थिति में आइटम की वास्तविक कीमत को ईएमआई में परिवर्तित किया जाता है। मान लीजिए किसी वस्तु की कीमत 18 हजार रुपये है तो ग्राहक को छह महीने की किस्त के रूप में प्रति माह केवल तीन हजार रुपये का भुगतान करना होगा। इसलिए, ग्राहक को लगता है कि ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ एक बहुत ही सुविधाजनक और लाभदायक लेनदेन है। लेकिन, वास्तव में, यह सिर्फ एक भ्रम है।

इस तरह विक्रेताओं को लाभ होता है
इसके अलावा, यदि उत्पाद पर कोई छूट है, तो यह आपको नो कॉस्ट ईएमआई में नहीं दिया जाता है। उदाहरण के लिए, एक वस्तु की लागत 15 हजार रुपये है। अगर आप इसे एकमुश्त भुगतान के साथ खरीदते हैं तो आपको 10 प्रतिशत की छूट मिलेगी। लेकिन, अगर आप ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ के जरिए आइटम खरीदते हैं तो आपको 15,000 रुपये देने होंगे। इसके अलावा प्रोसेसिंग चार्ज को भी ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ में जोड़ा जाता है। अगर कंपनी खुद ईएमआई पर ब्याज दे रही है तो भी आपसे ब्याज और बैंक सर्विस चार्ज पर 18 फीसदी जीएसटी वसूला जाता है।

क्या है आरबीआई का नियम?
इस संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक के नियम कहते हैं कि कोई भी ऋण कभी भी मुफ्त नहीं होता है। 2013 के एक सर्कुलर में आरबीआई ने कहा था कि ‘जीरो पर्सेंट इंटरेस्ट’ की कोई अवधारणा नहीं है। क्रेडिट कार्ड में बकाया राशि पर ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ योजना में ब्याज की राशि प्रोसेसिंग शुल्क के रूप में वसूली जाती है। इसी तरह, बैंक अपने ऋण पर ब्याज को वस्तु की कीमत में शामिल करते हैं। यानी ‘नो कॉस्ट ईएमआई’ ग्राहकों को एक तरह से गुमराह करने वाला है।

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News Title: No Cost EMI Scheme check details here on 25 November 2022.

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