Property Knowledge | देशभर में हर दिन संपत्ति के खरीद-बिक्री के लाखों, करोड़ों रुपयों में लेन-देन होते हैं। संपत्ति का अर्थ है किसी भी संपत्ति की खरीद-बिक्री कई प्रकार से होती है, जिसके बारे में आम लोगों को कम जानकारी होती है। घर, इमारत, दुकान या प्लॉट की खरीद-फरोख्त सेल डीड, लीज डीड, गिफ्ट डीड और पॉवर ऑफ अटॉर्नी द्वारा की जाती है।
ऐसी स्थिति में, सवाल उठता है कि संपत्ति अपने नाम पर करने के लिए कौन सा तरीका सही है। सेल डीड का मतलब है कि क्या पंजीकरण करना चाहिए या पट्टे का अनुबंध करना चाहिए। अगर मैं पावर ऑफ अटॉर्नी लेकर घर का मालिक बन जाऊं, तो भविष्य में कोई समस्या आएगी क्या? इनके बीच क्या अंतर है और कौन सा विकल्प आपके लाभ का है? पहले हम इसके बारे में जान लेते हैं।
संपत्ति अपने नाम कराने के लिए कौन सा विकल्प लाभदायक है?
यदि आपने बिक्री अनुबंध या सेल डीड करके यानी पंजीकरण करके कोई जमीन या घर खरीदा है तो आपको संपत्ति के पूरे मालिकाना अधिकार मिलते हैं। सरल शब्दों में कहें तो, सेल डीड एक ऐसा दस्तावेज है जिसके माध्यम से संपत्ति का मालिकाना हक विक्रेता से खरीदार के पास जाता है। बिक्री अनुबंध स्टांप पेपर पर लिखा जाता है और स्थानीय उपनिबंधन कार्यालय में भी पंजीकरण होता है। सेल डीड का पंजीकरण होने के बाद संपत्ति का म्यूटेशन भी होता है.
लीज डीड क्या है?
किरायानामा या लीज डीड भी संपत्ति खरीदने का एक तरीका है। इसमें, संपत्ति कुछ वर्षों से लेकर 99 वर्षों तक के लिए किरायानामे पर दी जाती है। किरायानामा अनुबंध खरीददार को संपत्ति के सभी अधिकार देता है लेकिन, स्थायी नहीं बल्कि केवल एक निश्चित समयावधि के लिए होते हैं। पुराने समय में किरायानामा अधिक प्रचलित था और अक्सर सरकार लीज डीड को संपत्तियों की सेल डीड में ट्रांसफर करने के लिए प्रस्ताव देती है।
संपत्ति की खरीद में सेल डीड ही लाभदायक है।
सेल डीड यानी रजिस्ट्रेशन किसी भी प्रकार की संपत्ति खरीदने का उचित तरीका है। इससे खरीदार को पूर्ण मालिकाना हक मिलता है। जमीन खरीदने-बेचने के लिए खरीदार और विक्रेता मिलकर तहसील में बिक्री पत्र तैयार करते हैं। मतलब, दोनों पक्षों (खरीदार-विक्रेता) द्वारा किए गए अनुबंध का कानूनी दस्तावेज है, जिसमें खरीदार-विक्रेता, संबंधित जमीन, नक्शा, गवाह, मोहर आदि सभी जानकारी होती है।
सेल डीड के द्वारा विक्रेता खरीदार को भूमि का पूरा कब्जा देता है। बिक्री अनुबंध पंजीकरण के बाद खरीद-फरोख्त की औपचारिकता पूरी होती है। बिक्री अनुबंध पंजीकृत नहीं होने तक खरीदार कानूनी रूप से संपत्ति का सही मालिक नहीं बन सकता। एक बार बिक्री अनुबंध पंजीकृत हो गया और म्यूटेशन हो जाने पर खरीदार हमेशा के लिए संपत्ति का मालिक बन जाता है।