Income Tax Return | इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने वालों के लिए यह अच्छी खबर है। एक बड़े कदम के तहत आयकर विभाग ने टैक्स अथॉरिटीज को विशेष शर्तों के साथ टैक्सपेयर्स को देय ब्याज माफ करने या घटाने की इजाजत दे दी है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ अधिकारी अब टैक्स पर लगने वाले ब्याज को घटा या माफ कर सकते हैं। आयकर कानून की धारा 220 (2ए) के तहत अगर करदाता मांग नोटिस में उल्लिखित कर की राशि का भुगतान करने में विफल रहता है तो भुगतान में देरी होने पर उसे 1% प्रतिमाह की दर से ब्याज देना होगा।
आयकर विभाग ने करदाताओं को दी राहत
CBDT ने चार नवंबर को सर्कुलर जारी कर अधिकारियों को आयकर कानून की धारा 220 (2) के तहत देय ब्याज को कम करने या माफ करने का निर्देश दिया है। अधिनियम प्रधान मुख्य आयुक्त या मुख्य आयुक्त या प्रधान आयुक्त या आयुक्त रैंक के अधिकारियों को देय ब्याज की राशि को कम करने या माफ करने का अधिकार देता है।
पहले कितना ब्याज आवश्यक था?
आईटी अधिनियम की धारा 220 (2) के तहत, यदि करदाता धारा 156 के तहत मांग नोटिस में दर्ज कर का भुगतान नहीं करता है, तो प्रति माह 1% की साधारण दर से राशि पर ब्याज लिया जाएगा। धारा 220 (2A) के तहत प्रधान मुख्य आयुक्त या मुख्य आयुक्त या प्रधान आयुक्त या आयुक्त रैंक के अधिकारियों के पास ब्याज की राशि को कम करने या माफ करने की शक्ति होती है।
कर अधिकारी कितनी राशि माफ कर सकते हैं?
सीबीडीटी ने एक सर्कुलर में ब्याज की उस सीमा की जानकारी दी है, जिसे माफ करना या घटाना इन अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में होगा.
* प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर रैंक का अधिकारी 1.5 करोड़ रुपये से अधिक के ब्याज को माफ करने या कम करने का फैसला कर सकता है।
* यदि देय ब्याज 50 लाख रुपये से 1.5 करोड़ रुपये के बीच है, तो मुख्य आयुक्त रैंक का एक अधिकारी निर्णय ले सकता है।
* यदि देय ब्याज 50 लाख रुपये तक है, तो प्रधान आयुक्त या आयुक्त रैंक का एक अधिकारी इसे कम करने या माफ करने का निर्णय ले सकता है।
करदाताओं को इन शर्तों पर ध्यान देना चाहिए
परिपत्र में उन परिस्थितियों का भी वर्णन किया गया है जिनके तहत उपरोक्त अधिकारी धारा 220 (2 ए) के तहत निर्णय ले सकते हैं। इस हिसाब से पहले मामले में ब्याज की रकम ऐसी होगी कि चुकाना काफी मुश्किल होगा। दूसरे मामले में व्यक्ति अपने नियंत्रण में नहीं होने का कारण बताते हुए ब्याज का भुगतान नहीं कर सकता है, जबकि तीसरी शर्त यह है कि करदाता ने किसी बकाया राशि की वसूली या आकलन से संबंधित जांच में अधिकारियों के साथ सहयोग किया हो।
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